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साला मैं तो साहब बन गया! रिक्शा चलाने वाला बना करोड़पति, खुल गई 2.5 करोड़ रुपए की लॉटरी

Rakesh Kumar
4 Min Read
Dev Singh

Dev Singh Lottery : ऊपरवाला जब भी देता, देता छप्पर फाड़ के…कॉमेडी मूवी हेरा-फेरी का यह गाना तो आपने जरूर सुना होगा। यह बात पंजाब के मोगा जिले के लोहगढ़ निवासी देव सिंह के लिए सच हो गई है। उनके पास इतनी दौलत आ गई है कि उनके पैर जमीं पर नहीं टिक रहे। वे खुशी के मारे आसमां में उड़ रहे हैं। आखिर खुशी हो भी क्यों ना, आखिरकार एक रिक्शा चलाने वाला रातों-रात करोड़पति बन गया यानी फर्श से सीधे अर्श पर पहुंच गया। जिस इंसान को दो वक्त की रोटी के लिए दिन-रात एक करने पड़ रहे हो, उसका आगे का जीवन पूरी तरह से सुरक्षित हो जाए तो क्या कहने। अब हम आपको सगीना फिल्म में दिलीप कुमार के ‘साला मैं तो साहब बन गया’ गाने को चरितार्थ करने वाले देव सिंह की पूरी कहानी बताते हैं।

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रिक्शा चलाकर जीवनयापन करते हैं देव सिंह

वे पिछले 40 साल से हर स्पेशल मौके पर लॉटरी के टिकट खरीद रहे हैं। उन्हें हमेशा से भरोसा था कि एक न एक दिन भगवान उन पर जरूर मेहरबान होंगे। वे हर साल बंपर ड्रा के टिकट खरीदते थे। आखिरकार देव सिंह पर ऊपरवाले की कृपा हो गई और उन्होंने पंजाब स्टेट लॉटरीज का 2.5 करोड़ रुपए का बैसाखी बंपर जीत लिया है। खास बात यह है कि इससे पहले जीवन में उनकी कभी 100 रुपए की लॉटरी भी नहीं लगी थी। वे रिक्शा चलाकर परिवार का पालन-पोषण करते हैं। वे जितनी कमाई करते हैं वह पूरी घर पर खर्च हो जाती है। ऐसे में उन्होंने कभी बैंक खाता तक नहीं खुलवाया और न ही उनके पास कोई मोबाइल है। देव सिंह का कहना है कि अब मैं बैंक अकाउंट खुलवाऊंगा। अभी तक रिक्शा चलाकर इतना नहीं कमा पाता था कि परिवार के खर्चे पूरे करने के बाद मेरे पास कुछ बचे। जब पैसे ही नहीं थे, तो खाता खुलवाने से क्या होता।

पशुओं और पेड़-पौधों के प्रति सेवाभाव ने दिलाया पुरस्कार

देव सिंह लोहगढ़ इलाके में एक कच्चे घर में रहते हैं। इसमें छोटे-छोटे चार कमरे बने हुए हैं। वे कई सालों से रिक्शा चला रहे हैं। वे लॉटरी भले ही खरीदते हैं, लेकिन उनमें और कोई ऐब नहीं है। वे किसी भी प्रकार के नशे के आदी नहीं हैं। देव सिंह मेहनत पर यकीन करते हैं। वे प्रकृति और अन्य जीवों के प्रति दया भाव रखते हैं। वे पशुओं को पानी पिलाते हैं और सूखे पेड़-पौधों में भी पानी डालना नहीं भूलते। वे बचपन से ऐसा कर रहे हैं। देव सिंह का मानना है कि उनके इसी सेवाभाव की बदौलत उन्हें यह पुरस्कार मिला है।

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