भारत में कुछ साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में जब गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) लागू हुआ था तो काफी बवाल मचा था। विपक्षी दलों और कई व्यापारिक संगठनों ने इसका विरोध किया था। हालांकि अब धीरे-धीरे सब लोग इसके अभ्यस्त हो चुके हैं। इस बीच गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स ऑथोरिटीज एक बार फिर से एक्टिव मोड में हैं। वे टैक्सपैयर्स के बैंकिंग ट्रांजेक्शंस (लेन-देन) तक रियल टाइम के करीब पहुंचने की कोशिश कर रही है। इससे कुछ बिजनेस के सेक्शंस द्वारा फेक इनवोइसेज (फर्जी चालान) और इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) के एक्सेस यूज को डिटेक्ट किया जा सकेगा। यह कदम हालिया इनवेस्टिगेशंस को फॉलो करता है, जिनमें पता चला था कि हवाला लेन-देन के लिए फेक चालानों के माध्यम से अनुचित टैक्स क्रेडिट जमा किया गया। कई केस में यह भी सामने आया कि घुमावदार रूट्स से फंड फाइनली उन लोगों को लौटाया गया, जो फर्जी चालान जनरेट कर रहे थे। शैल कंपनियां भी फर्जी चालानों से पैसे को राउटिंग करती दिखीं।
यह भी पढ़ें : Anil Manibhai Naik : 750 रुपए की कमाई से पहुंचे 137 करोड़ रुपए तक, ‘दानवीर’ भी ऐसे कि…
रजिस्ट्रेशन में टैक्सपेयर देता है सिर्फ एक अकाउंट की डिटेल
एक सूत्र ने कहा कि ऐसे केसों में मनी ट्रेल काफी महत्वपूर्ण है। जीएसटी रजिस्ट्रेशन के समय टैक्सपेयर सिर्फ एक बैंक अकाउंट की डिटेल देता है, जबकि एक बिजनेस में कई अकाउंट यूज किए जा सकते हैं। फिलहाल टाइमली मैनर में बैंकिंग लेन-देन का डेटा हासिल करना मुश्किल है। सोर्स ने आगे कहा कि अब तक अक्सर डिटेल उपलब्ध करा दी जाती है। जो कंपनी या व्यक्ति बोगस चालान जनरेट करते हैं, वे पहले से ही गायब की जा चुकी हैं। जीएसटी ऑथोरिटीज अब बैंकिंग लेन-देन पर तेजी से डेटा लेना चाहती हैं। इनकम टैक्स विभाग संभावित टैक्स चोरी पर शिकंजा कसने के लिए हाई वैल्यू ट्रांजेक्शंस, संदिग्ध लेन-देन तथा एक निश्चित सीमा से ऊपर के कैश डिपोजिट का डेटा लेता है। सूत्रों ने बताया कि टैक्स चोरी पर लगाम लगाने के लिए इश्यू को अब सेंट्रल बोर्ड ऑफ इनडायरेक्ट एंड कस्टम्स (CBIC) के पास ले जाया जा रहा है। हालांकि इसके लिए आंतरिक तौर पर और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के साथ ज्यादा डिस्कशन की जरूरत है।
रिस्क पैरामीटर्स में शामिल होंगे ये डेटाबेस
जीएसटी ऑथोरिटीज भी संभावित टैक्स चोरों को पकड़ने के लिए अपने रिस्क पैरामीटर्स में ज्यादा डेटाबेस को शामिल करने पर विचार कर रही हैं। यह सर्विस रिलेटेड इंडस्ट्रीज में ज्यादा किया जाएगा, जहां सर्विसेज की असल डिलीवरी को साबित करना मुश्किल होता है। डेटाबेस में प्रोविडेंट फंड डेटा, शिपिंग लाइंस व फ्राइट फॉर्वडर्स पर कस्टम्स डेटा, रेलवे के साथ-साथ कंस्ट्रक्शन व वर्क्स जैसी सर्विसेज पर पंचायती राज डेटा शुमार हैं। सोर्स ने कहा कि यह विभिन्न कंपनियों द्वारा प्रोवाइड कराई जा रही सर्विसेज के प्रकार का आइडिया देगी कि वे सही टैक्स दे रही हैं और इनपुट टैक्स क्रेडिट अवेल कर रही हैं।
16 मई से 15 जुलाई तक चलेगा यह अभियान
जीएसटी अथॉरिटीज पहले से ही टैक्सपेयर्स के इनकम टैक्स डेटाबेस और मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स की फिलिंग्स को क्रॉस चैक करने की योजना बना रही है। इससे यह पता चलेगा कि वे सही टैक्स चुका रहे हैं या नहीं। टैक्स चोरी पर फोकस ऐसे समय आया है जब जीएसटी डिपार्टमेंट फर्जी चालान और टैक्स चोरी को कट डाउन करने की सोच रहा है। संदिग्ध और फर्जी जीएसटी आईडेंटिफिकेशन नंबर्स का पता लगाने के लिए ऑल सेंट्रल एंड स्टेट टैक्स एडमिनिस्ट्रेशंस की ओर से 16 मई से 15 जुलाई तक एक स्पेशल ऑल इंडिया ड्राइव का संचालन किया जा रहा है। हमारे देश में जीएसटी के अंडर में करीब 14 मिलियन बिजनेस और प्रोफेशनल्स रजिस्टर्ड हैं। सरकार टैक्सपेयर्स का दायरा बढ़ाने की कोशिश में है, जिससे यह सुनिश्चित हो कि कोई टैक्स चोरी नहीं कर पाए।
यह भी पढ़ें : LIC Jeevan Labh : हर माह करें बस इतना इनवेस्टमेंट, मैच्योरिटी पर मिलेंगे 54 लाख रुपए