भारत में अधिकतर लोग ऐसे हैं जो वर्तमान की तुलना में भविष्य को ज्यादा महत्व देते हैं। वे खुद और परिवार का भविष्य सुरक्षित करने के लिए दिन-रात एक किए रहते हैं। उनकी कमाई चाहे जितनी हो लेकिन वे इसमें से कुछ न कुछ बचाकर ऐसी जगह लगाना चाहते हैं, जिससे वे आने वाले समय में किसी के मोहताज न रहें। आम तौर पर वे निवेश के लिए बैंक की ओर देखते हैं। इसमें भी उन्हें फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) खूब रास आती है और वे इसे बेहतर विकल्प मानते हैं। इस बीच, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) का एक कदम उन्हें एफडी खुलवाने के लिए और प्रोत्साहित करेगा। आरबीआई ने हाल ही ब्याज दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं की।
विशेषज्ञों का मानना है कि फिलहाल निवेशकों को उच्च ब्याज दरों वाली बैंक एफडी की ओर रुख कर अपने निवेश के हिसाब से समयावधि चुननी चाहिए। अभी अधिकतर बैंक 7 फीसदी या इससे ज्यादा रेट पर एफडी ऑफर कर रहे हैं। छोटे फाईनेंस बैंकों की ब्याज दरें (इंटरेस्ट रेट्स) पब्लिक और प्राईवेट सेक्टर बैंक व पोस्ट ऑफिसों से भी ज्यादा है। चूंकी विविधीकरण (डाइवर्सिफिकेशन) आपके निवेश के जोखिम को कम करता है इसलिए एफडी को कई बैंक, विभिन्न कॉर्पोरेट्स व अलग-अलग समयावधि में फैलाना चाहिए। 180 दिन (6 माह) से 5 साल की रेंज तक अलग-अलग समय पर मैच्योर होने वाली एफडी कराएं।
बैंकबाजार डॉट कॉम के सीईओ एडहिल शेट्टी कहते हैं कि बड़े बैंकों व कंपनियों के साथ कई विकल्प हैं जो एक निवेशक को पांच साल या उससे ज्यादा की अवधि तक पीक रेट्स पर एफडी की इजाजत देते हैं। अगर आपने पिछले साल से कम रेट में एफडी लॉक करवाई है तो आप अपनी एफडी को लिक्विडेट कर ज्यादा रिटर्न के लिए फिर से निवेश कर सकते हैं। कई बैंक ऊंची रेट्स के साथ स्पेशल टेनोर डिपोजिट्स ऑफर कर रहे हैं। चूंकी इन स्कीम्स में समय से पहले पैसा निकलवाने की सुविधा नहीं होती इसलिए डिपोजिटर्स को स्पेशल एफडी स्कीम्स में निवेश करने से पहले अपनी लिक्विडिटी आवश्यकताओं को देखना चाहिए। एफडी रेट्स में बदलाव को प्रभावित करने में रेपो रेट ही एकमात्र फेक्टर नहीं है।
पैसाबाजार डॉट कॉम के सीईओ व कोफाउंडर नवीन कुकरेजा का कहना है कि एफडी रेट सिस्टम में ओवरऑल लिक्विडिटी, क्रेडिट ग्रॉथ रेट्स व डिपॉजिट ग्रॉथ रेट्स के अंतर से भी प्रभावित होती है। जब तक क्रेडिट ग्रॉथ रेट बैंक डिपॉजिट की ग्रॉथ रेट से बेहतर प्रदर्शन करती है तब तक बैंक ज्यादा एफडी को लुभाने के लिए अपनी एफडी इंटरेस्ट रेट्स बढ़ाना जारी रखते हैं। इससे बैंकों का क्रेडिट डिमांड बढ़ाने का लक्ष्य पूरा होता है। फिलहाल पोलिसी रेट बढ़ोतरी में रोक लगाने से अस्थायी तौर पर लोन की ब्याज दरों में वृद्धि रुक गई लेकिन एफडी रेट्स के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता।
कुकरेजा ने कहा कि जिन लोगों की पहले से एफडी है उन्हें रेपो रेट में बदलाव को नजरअंदाज कर इसे मैच्योरिटी तक जारी रखना चाहिए। उन्हें तब ही समय से पहले एफडी तुड़वानी चाहिए जब उन्हें नई एफडी रेट और उनकी पहले से मौजूद एफडी की रेट में बड़ा अंतर नजर आए। पहले एफडी तुड़वाने से पेनल्टी भी लगती है। उल्लेखनीय है कि 5 लाख रुपए तक के बैंक डिपॉजिट आरबीआई की सहायक डिपॉजिट इंश्योरेंस क्रेडिट गारंटी स्कीम (DICGS) में इंश्योर्ड है। यहां तक कि छोटे फाईनेंस बैंक भी शेड्यूल्ड बैंक के रूप में क्लासीफाइड हैं और उनके डिपॉजिटर डीआईसीजीसी में कवर्ड हैं।
बैंक फेलियर के मामले में कमुलेटिव डिपॉजिट (फिक्स्ड, करेंट, सेविंग, रिकरिंग डिपॉजिट) के लिए हर शेड्यूल्ड बैंक में हर डिपॉजिटर का 5 लाख रुपए तक की राशि का इंश्योरेंस कवर रहता है। इसलिए सर्वाधिक पोसिबल कैपिटल प्रोटेक्शन के साथ उच्च रिटर्न चाहने वाले डिपॉजिटर को अपनी हाई-यील्ड एफडी को विभिन्न शेड्यूल्ड बैंक के साथ इस तरह फैलाना चाहिए कि उनका कमुलेटिव डिपॉजिट (संचयी जमा) उन बैंकों में 5 लाख रुपए की लिमिट क्रॉस नहीं करे।
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