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डीजल की कार खरीदने वालों को सरकार ने दिया बड़ा झटका, बंद होगी गाड़ियां, जानिए असल कारण

Rakesh Kumar
4 Min Read
Diesel

Diesel Car : हमारे देश में अभी अधिकतर वाहन पेट्रोल-डीजल से ही चलते हैं। ऐसे असंख्य वाहन हैं, जो सड़कों पर दौड़ रहे हैं। कमर्शियल विकल (व्यावसायिक वाहन) मुख्य रूप से डीजल पर ही निर्भर है। दो पहिया वाहन के लिए पेट्रोल जरूरी है। कारों के मामले में कई कंपनियां ईंधन के दोनों ऑप्शन (पेट्रोल व डीजल) देती हैं। कई लोग डीजल की कारों को भी प्राथमिकता देते हैं। माना जाता है कि डीजल के कारण पर्यावरण काफी प्रदूषित होता है, लेकिन अभी इसका कोई बेजोड़ तोड़ नहीं मिला है। इस बीच हमारी यह खबर जानकर डीजल की कार खरीदने की चाह रखने वालों को झटका लग सकता है। दरअसल मिनिस्ट्री ऑफ पेट्रोलियम एंड नेचुरल गैस की ओर से बनाए गए पैनल ने साल 2027 से भारत में डीजल से चलने वाली कारों को प्रतिबंधित करने की सिफारिश की है।

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2027 तक डीजल वाले चौपहिया वाहनों पर लगे बैन : पैनल

सरकार जीरो एमिशन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए जोर-शोर से जुटी हुई है। इसी दिशा में इलेक्ट्रिक और हाइड्रोजन से चलने वाले वाहनों को प्रोत्साहन देने की योजना भी शुरू की गई है। पैनल ने रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को वर्ष 2027 तक डीजल चलित फोर व्हीलर्स के उपयोग पर बैन लगा देना चाहिए। इसके अलावा वाहनों से होने वाले उत्सर्जन में कटौती के लिए 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले और प्रदूषित शहरों में इलेक्ट्रिक और गैस ईंधन वाले वाहनों की ओर मुड़ना चाहिए। भारत ग्रीन हाउस गैस के बड़े उत्सर्जकों में से एक है। भारत ने पेरिस क्लाइमेट एग्रीमेंट के तहत 2070 तक कार्बन न्यूट्रल होने का टार्गेट सेट किया है। यूरोप की नजर 2050 तक ही इस लक्ष्य तक पहुंचने पर है।

अगले साल बंद हो सकती है डीजल से चलने वाली बसें

पैनल ने ऑइल मिनिस्ट्री की वेबसाइट पर जारी रिपोर्ट में कहा कि भारत को अगले साल यानी 2024 से डीजल बसों का उपयोग बंद करना चाहिए। साथ ही साल 2030 से ऐसी बसों को परिवहन में शामिल नहीं करना चाहिए जो इलेक्ट्रिक नहीं है। अभी यह साफ नहीं हुआ कि पेट्रोलियम मंत्रालय पूर्व तेल सचिव तरुण कपूर की अध्यक्षता वाली एनर्जी ट्रांजिशन एडवाइजरी कमेटी की सिफारिशों को लागू करने के लिए कैबिनेट की मंजूरी लेगा या नहीं। पैनल का मानना है कि 2024 से केवल बिजली से चलने वाले डिलीवरी वाहनों को शहरों में रजिस्ट्रेशन की मंजूरी दी जानी चाहिए।

कार्गो की आवाजाही के लिए रेलवे और गैस से चलने वाले ट्रक का ज्यादा उपयोग हो। उम्मीद है कि रेलवे नेटवर्क 2-3 साल में पूरी तरह से इलेक्ट्रिक हो जाएगा। सरकार को 31 मार्च से आगे के लिए फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक एंड हाइब्रिड व्हीकल्स स्कीम (FAME) के तहत दिए गए प्रोत्साहनों के “लक्षित विस्तार” पर विचार करना चाहिए। अब देखना है कि ये सिफारिशें हकीकत के धरातल पर कितनी कारगर साबित होती हैं। वैसे पिछले कुछ सालों में भारत में बैटरी से चलने वाले इलेक्ट्रिक विकल (EV) और सीएनजी वाहनों ने अपना खास स्थान बनाया है। इनकी लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है।

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