Image Credit: Google
अपने प्राचीन इतिहास में पृथ्वी के समान दिखने वाले शुक्र ने अपने कठोर वातावरण, अत्यधिक तापमान और असहनीय वातावरण से वैज्ञानिकों को मोहित कर लिया है।
Image Credit: Google
शुक्र अपने घने कार्बन डाइऑक्साइड युक्त वातावरण, 900 डिग्री फारेनहाइट तक पहुंचने वाले अत्यधिक तापमान और उच्च वायुमंडलीय दबाव के लिए जाना जाता है, जो इसे अमानवीय बनाता है।
Image Credit: Google
शुक्रयान-1 मिशन: इसरो दिसंबर 2024 में शुक्र की सतह का पता लगाने एक आर्बिटर भेजने को तैयार है। इस मिशन का उद्देश्य शुक्र के रहस्यों का खुलासा करना है।
Image Credit: Google
शुक्र ग्रह पर आर्बिटर भेजने से पहले एक दिलचस्प चुनौती सामने आई है। कोलोराडो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने शुक्र पर बिजली गिरने विवाद किया है। वैज्ञानिकों का सुझाव है कि यह पहले की तुलना में कम हो सकती है।
Image Credit: Google
नासा का पार्कर सोलर प्रोब: सौर अध्ययन के लिए डिजाइन किए गए नासा के पार्कर प्रोब ने वीनस फ्लाईबाई के दौरान 'व्हिस्लर तरंगों' का पता लगाया, जिससे बहस छिड़ गई।
Image Credit: Google
नए विश्लेषण से संकेत मिलता है कि शुक्र पर पाई गई व्हिसलर तरंगें बिजली से नहीं बल्कि ग्रह के कमजोर चुंबकीय क्षेत्र में गड़बड़ी से जुड़ी हो सकती हैं।
Image Credit: Google
यह खोज 2021 के एक अध्ययन के अनुरूप है जो शुक्र पर बिजली गिरने से रेडियो तरंगों का पता लगाने में भी विफल रहा था।
Image Credit: Google
शुक्र और बिजली पर बहस 1978 से शुरू होती है जब नासा के पायनियर वीनस अंतरिक्ष यान ने व्हिस्लर तरंगों का पता लगाया था, जिससे बार-बार बिजली गिरने की अटकलें लगाई जाने लगीं।
Image Credit: Google
शोधकर्ताओं ने शुक्र की व्हिसलर तरंगों में एक अजीब पैटर्न देखा, जो बाहर की बजाय नीचे की ओर बढ़ रही थी, जो चुंबकीय पुनर्संयोजन के संभावित कारण का सुझाव देती है।
Image Credit: Google
Image Credit: Google