Navnoor Kaur ने किया किला फतेह! गुड़ बेच कमाए 2 करोड़ रुपए, ऐसे आया यह कमाल का आइडिया

Rakesh Kumar
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Navnoor Kaur

Navnoor Kaur : अगर कोई आपको भेड़चाल में शामिल होने को कहे तो आपको ज्यादा दिक्कत नहीं आएगी। क्योंकि इसमें करना ही क्या है। आप अपने कम्फर्ट जोन में रहेंगे और बस दूसरों को देखकर उन्हें फॉलो करना है। यानी आपको सेट फॉर्मेट पर चलना है। यह तो हुआ जिंदगी जीने का पहला तरीका। अब हम बात करेंगे दूसरे रास्ते की जिस पर बिरले ही चलते हैं और उल्लेखनीय सफलता हासिल करते हैं। इसमें आपको भीड़ से अलग कुछ करना पड़ता है। यह बहुत जोखिमभरा काम है, जिसमें जोर से गिरने की पूरी आशंका रहती है। वैसे भी आजकल हर फील्ड में बहुत कंपीटिशन है। ऐसे में यूनीक आइडिया पर वर्कआउट करना और उसमें मील का पत्थर छू लेना आसान बात नहीं है। हमारी आज की कहानी की रियल स्टार नवनूर कौर ने यह सब संभव करके दिखाया है।

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नवनूर दिन में दफ्तर और रात में स्टार्ट अप पर करतीं काम

अब नवनूर कौर के जीवन के हर पहलू पर नजर डालते हैं। नवनूर ने देश के सर्वश्रेष्ठ बिजनेस स्कूलों में से एक IMT गाजियाबाद से साल 2019 में एमबीए की डिग्री ली। उन्हें एक लार्ज प्राइवेट सेक्टर बैंक में मोटी सेलरी वाला जॉब भी मिल गया। नवनूर ने अपनी बचत के साथ घर से ही पार्ट टाइम बिजनेस शुरू कर दिया। दो साल के अंदर ही बिजनेस से इतना लाभ मिलने लगा कि नवनूर ने जॉब छोड़ने और अपना पूरा समय स्टार्टअप में डेडिकेट करने का फैसला कर लिया। नवनूर ने अपनी सेविंग्स के साथ बिजनेस चालू किया था। वह पूरा दिन दफ्तर में काम करती और रात में अपने स्टार्ट अप प्रोजेक्ट पर। उनका परिवार नहीं चाहता था कि वह जॉब छोड़े। हालांकि वह उन्हें इस बात के लिए राजी करने में सफल रही कि उनका आइडिया जरूर काम करेगा। नवनूर ने गुड़ (Jaggery) के उत्पाद बेचना शुरू कर दिए।

भारत के 22 जिलों में फैला है नवनूर का बिजनेस

उनकी कंपनी जेगरकेन (Jaggercane) ने पिछले साल 2 करोड़ रुपए का टर्नओवर अर्न किया। उनका अगले पांच साल में इस टर्नओवर को 100 रुपए तक पहुंचाने का लक्ष्य है। नवनूर अपने परिवार की पहली उद्यमी (Entrepreneur) हैं। उनका बिजनेस भारत के 22 जिलों में फैला हुआ है। नवनूर ने लुधियाना से पढ़ाई की। उनके पिता एक प्रोफेसर और मां एक स्कूल में प्रिंसिपल हैं। एमबीए के बाद उनका चयन आईएमटी गाजियाबाद के लिए हो गया था। वह पढ़ाई में अच्छी हैं। नवनूर गुरुग्राम में कोटक बैंक में काम करती थीं। उन्हें वहां अच्छी सेलरी मिलने लगी थी। हालांकि वह हमेशा से ही एक फूड बिजनेस चलाना चाहती थीं।

परिवार के कई सदस्यों के था डाइबिटीज

नवनूर ने भास्कर के साथ बातचीत में कहा कि उनके परिवार के कई सदस्यों के डाइबिटीज (मधुमेह) रोग था, जिससे उन्हें गुड़ बेचने का आइडिया आया। मैं रिफाइन्ड शुगर का एक स्वास्थ्यवर्धक आल्टरनेटिव खोचना चाहती थीं। तब मैंने पाया कि भारतीय बाजार में केमिकल फ्री गुड़ बेचने वाला कोई बड़ा प्लेयर नहीं था। मैंने गुड़ के साथ प्रयोग करते हुए कई प्रोडक्ट तैयार कर लिए। इसके बाद नवनूर ने इन उत्पादों की डोर टू डोर मार्केटिंग की यानी वह इन्हें बेचने के लिए घर-घर गईं। जब लोगों ने इन्हें चखकर खरीदना शुरू कर दिया तो नवनूर का गुड़ के उत्पादों के प्रति विश्वास बढ़ गया।

साथी के साथ मिलकर नवनूर ने मारी बाजी

नवनूर अपने पिता के स्टूडेंट कौशल से मिलीं, जो पंजाब में एक मैनुफैक्चरिंग प्लांट चलाता था। तब दोनों ने मिलकर काम शुरू कर दिया। कौशल मैनुफैक्चरिंग पर नजर रखता है, तो नवनूर ब्रैंडिंग, ऑपरेशंस और टाई-अप्स को हैंडल करती हैं। नवनूर अपने जॉब से 5 लाख रुपए बचा चुकी थीं, जो उन्होंने बिजनेस के लिए इनवेस्ट किए थे। नवनूर को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कई दुकानदारों ने उनके उत्पादों को थोड़े मार्जिन और कम समय तक ही यूज किए जाने योग्य यानी उनकी शेल्फ लाइफ कम होने के चलते ठुकरा दिया। हालांकि इसके बावजूद नवनूर ने हिम्मत नहीं हारी। उनके साथी कौशल ने इन उत्पादों की शेल्फ लाइफ 1 से 9 महीने तक बढ़ा दी। उन्होंने इन्हें विदेशी बाजारों में भी एक्सपोर्ट किया। उनकी कंपनी में 25 लोगों को रोजगार दिया हुआ है, जिनमें 7-8 महिलाएं भी शामिल हैं।

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